नई दिल्ली। कौलेश्वरी पहाड़ पर स्थित मां कुलेश्वरी का मंदिर एक शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। यहां आने वाले भक्तों का मानना है कि देवी संतान की तिरछी आंख ठीक करती हैं और कुल की रक्षा करती हैं। लगभग 150 साल पहले जैनियों द्वारा निर्मित इस मंदिर में भक्त संतान प्राप्ति की मन्नत मांगने के लिए आते हैं। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष भीड़ देखी जाती है।
इस पहाड़ पर एक अनोखी मान्यता है। अगर किसी बच्चे की आंख तिरछी है, तो यहां आने से और मन्नत मांगने से आंख ठीक हो जाती है। भक्त अक्सर माता के चरणों में नेत्र के समान सोना या चांदी चढ़ाते हैं जब उनकी मन्नत पूरी होती है। यह जगह कई परिवारों के लिए आशा का केंद्र बनी हुई है।
कौलेश्वरी पहाड़ पर तीन धर्मों का संगम है: सनातन, बौद्ध और जैन। यह स्थान महाभारत काल से पवित्र माना जाता है, जहां हिंदू विवाह और बच्चों का मुंडन संस्कार भी किया जाता है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे भगवान बुद्ध की तपोभूमि मानते हैं, जबकि जैन धर्म के लिए यह स्थान विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यहां के शिखर पर 10वें तीर्थंकर शीतलनाथ जी का जन्म हुआ था।
मंदिर तक पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं: एक चतरा के जोरी प्रखंड के बानसिंह से, और दूसरा हंटरगंज प्रखंड मुख्यालय से। यह स्थल गया इंटरनेशनल एयरपोर्ट से केवल 45 किमी और डोभी से 25 किमी दूर है, जिससे इसे पहुंचना आसान हो जाता है। यहां आकर भक्त माता के आशीर्वाद के साथ अपने मनोकामनाओं की पूर्ति की उम्मीद करते हैं।
अनूठी मान्यता
इस पहाड़ पर एक अनोखी मान्यता है। अगर किसी बच्चे की आंख तिरछी है, तो यहां आने से और मन्नत मांगने से आंख ठीक हो जाती है। भक्त अक्सर माता के चरणों में नेत्र के समान सोना या चांदी चढ़ाते हैं जब उनकी मन्नत पूरी होती है। यह जगह कई परिवारों के लिए आशा का केंद्र बनी हुई है।
धर्मों का संगम
कौलेश्वरी पहाड़ पर तीन धर्मों का संगम है: सनातन, बौद्ध और जैन। यह स्थान महाभारत काल से पवित्र माना जाता है, जहां हिंदू विवाह और बच्चों का मुंडन संस्कार भी किया जाता है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे भगवान बुद्ध की तपोभूमि मानते हैं, जबकि जैन धर्म के लिए यह स्थान विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यहां के शिखर पर 10वें तीर्थंकर शीतलनाथ जी का जन्म हुआ था।
पहुंचने के रास्ते
मंदिर तक पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं: एक चतरा के जोरी प्रखंड के बानसिंह से, और दूसरा हंटरगंज प्रखंड मुख्यालय से। यह स्थल गया इंटरनेशनल एयरपोर्ट से केवल 45 किमी और डोभी से 25 किमी दूर है, जिससे इसे पहुंचना आसान हो जाता है। यहां आकर भक्त माता के आशीर्वाद के साथ अपने मनोकामनाओं की पूर्ति की उम्मीद करते हैं।