जगन्नाथ साहू की रिपोर्ट
बालोद, 13 अगस्त 2025 — जिले में कानून व्यवस्था और प्रशासन की निष्पक्षता को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि एक ही मुद्दे पर आंदोलन करने वालों में यदि आम किसान हैं तो उन पर अपराध दर्ज होता है, लेकिन वही काम राजनीतिक दलों के नेता करें तो पुलिस और प्रशासन चुप्पी साध लेता है। यह दोहरा रवैया अब पूरे जिले में चर्चा और विवाद का विषय बना हुआ है।
हाल ही में बालोद थाना क्षेत्र के ग्राम लाटाबोड़ और आसपास के सात गांवों के किसानों ने खाद, यूरिया और डीएपी की किल्लत से परेशान होकर जनदर्शन में आवेदन दिया था। मांग अनसुनी रहने पर किसानों ने मजबूरन बालोद-दुर्ग मुख्य मार्ग पर चक्का जाम किया। इसके बाद बालोद थाना पुलिस ने 10 किसानों पर अपराध पंजीबद्ध कर दिया। इससे पहले भी करहीभदर और आसपास के गांवों के 14 किसानों सहित निर्दलीय जनपद सदस्य लोकेश सिन्हा पर इसी तरह की मांग के चलते प्रकरण दर्ज किया गया था।
इसके उलट, जिले के डौंडी ब्लॉक के कुसुमकसा में कांग्रेस नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने खाद संकट और बेसहारा गौवंश की समस्या को लेकर एनएच पर आर्थिक नाकेबंदी करते हुए दो घंटे तक चक्का जाम किया। डौंडी और डौंडीलोहारा ब्लॉकों में भी किसानों व नेताओं ने घंटों सड़क जाम रखी, लेकिन इनमें से किसी पर भी पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया।
किसानों का कहना है कि यह साफतौर पर प्रशासन की पक्षपातपूर्ण कार्यप्रणाली को दर्शाता है। लाटाबोड़ और करहीभदर के किसानों पर कड़ी कार्रवाई, जबकि नेताओं के खिलाफ कोई कदम न उठाना, किसानों के बीच नाराज़गी का बड़ा कारण बन गया है।
निर्दलीय जनपद सदस्य लोकेश कुमार सिन्हा ने कहा, “जिले के किसानों को उनकी फसल बचाने के लिए खाद-यूरिया की सख्त जरूरत है, लेकिन प्रशासन बार-बार असफल हो रहा है। आंदोलन के अगले दिन ही खाद पहुंचा दी जाती है, जिससे साबित होता है कि बिना दबाव के व्यवस्था सुधरती ही नहीं। अगर किसानों का आंदोलन गलत है, तो नेताओं पर भी वैसी ही कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन प्रशासन की नज़र सिर्फ किसानों पर है।”
किसानों का आरोप है कि बालोद में अब हालात ऐसे हो गए हैं कि अन्नदाता यदि अपनी जायज़ मांगों के लिए सड़क पर उतरते हैं तो उन्हें अपराधी बना दिया जाता है, जबकि राजनीतिक नेताओं के लिए नियम अलग हैं। यह असमानता न केवल किसानों के रोष को बढ़ा रही है, बल्कि प्रशासन की साख पर भी सवाल खड़े कर रही है।





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