फरसगांव (छत्तीसगढ़) रिपोर्ट: [विजय साहू/बस्तर एक्सप्रेस] : फरसगांव विकासखंड अंतर्गत ग्राम मांझीआठ में नेशनल हाईवे-30 (NH-30) के किनारे स्थित दर्जनों बड़े पेड़ों की अवैध कटाई का मामला सामने आया है। ग्रामीणों और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, गांव के ही कुछ दबंग लोगों द्वारा इन पेड़ों को बिना किसी वैध अनुमति के काटा गया है। जब इस संबंध में ग्रामीणों से पूछताछ की गई, तो उन्होंने किसी भी प्रकार की अनुमति होने से इनकार किया।

इस घटना की जानकारी जब संबंधित वन विभाग के अधिकारियों को दी गई, तो वे केवल औपचारिकता निभाकर लौट गए। वहीं, मौके पर पहुंचे नगर निगम (कॉर्पोरेशन) के अधिकारी भी बिना कोई ठोस कार्रवाई किए चुपचाप लौट गए। जब नगर निगम के जिम्मेदारों से बात की गई, तो उन्होंने इसे अपने विभाग का मामला मानने से इनकार करते हुए जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया।
इस घटनाक्रम से एक बड़ा सवाल खड़ा होता है—जब न वन विभाग और न ही नगर निगम जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं, तो आखिर इन अवैध रूप से कटते पेड़ों की जवाबदेही किसकी है?
सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण के नाम पर चलाई जा रही योजनाओं और नेताओं के बयानों के बीच भी एक बड़ा विरोधाभास नजर आया। भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री अक्सर ‘एक पेड़ माँ के नाम’ जैसे अभियान चलाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं। लेकिन, जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। मांझीआठ गांव में जिस प्रकार खुलेआम पेड़ों की कटाई की गई, उसमें वन विभाग के आला अधिकारी भी कार्रवाई से बचते नजर आए।
यह घटना न केवल प्रशासनिक उदासीनता को उजागर करती है, बल्कि सरकार की कथनी और करनी के बीच के अंतर को भी सामने लाती है। यदि समय रहते इस पर सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो इससे न केवल पर्यावरण को क्षति पहुँचेगी, बल्कि कानून व्यवस्था पर भी सवाल खड़े होंगे।

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