दंतेवाड़ा। बस्तर की आस्था और परंपरा से जुड़ा विश्वप्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व अब शुरू हो चुका है। इस पर्व की सबसे बड़ी परंपरा मां दंतेश्वरी की डोली और छत्र का दंतेवाड़ा से जगदलपुर प्रस्थान है। इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए सोमवार को दंतेवाड़ा से माता की डोली और छत्र पारंपरिक विधि-विधान और पूजा अर्चना के बाद जगदलपुर के लिए रवाना कर दी गई।
डोली को रवाना करने से पहले मां दंतेश्वरी की विशेष पूजा-अर्चना की गई। परंपरा के अनुसार दंतेवाड़ा पुलिस जवानों ने सलामी दी और माता को नमन किया। इसके बाद नगर राजा बोधराज देव को नगर की जिम्मेदारी सौंपकर मां दंतेश्वरी की डोली जगदलपुर के लिए प्रस्थान कर गई।
जगह-जगह हुआ स्वागत:-
डोली यात्रा के दौरान श्रद्धालु माता के स्वागत के लिए सड़कों पर उमड़े। हर पड़ाव पर माता का जयकारों के साथ स्वागत किया जा रहा है और विधिवत पूजा-अर्चना की जा रही है। यात्रा में जिया पुजारी, मांझी, पेरमा, जयता, सेवादार और समाज के प्रमुख प्रतिनिधि शामिल हुए हैं।डोली यात्रा पारंपरिक मार्ग से होती हुई कारली, गीदम, बास्तानार, किलेपाल, कोड़ेनार और तोकापाल पहुंचेगी। हर जगह श्रद्धालु माता के स्वागत में पलक-पांवड़े बिछाएंगे और धार्मिक अनुष्ठान होंगे।
75 दिनों तक चलने वाला पर्व:-
बस्तर दशहरा सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देश और विश्व में अपनी विशिष्ट परंपराओं और अनोखी मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। यह विश्व का सबसे लंबा उत्सव है, जो पूरे 75 दिनों तक चलता है। इस दौरान मां दंतेश्वरी की परंपराओं के साथ-साथ बस्तर की संस्कृति, आस्था और लोकजीवन भी जीवंत रूप में सामने आता है।
मां दंतेश्वरी की डोली के जगदलपुर पहुंचने के साथ ही बस्तर दशहरे की भव्य शुरुआत होगी। इस पर्व का हर पड़ाव एक नई परंपरा, नई संस्कृति और अनोखी धार्मिक आस्था को सामने लाता है।
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